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योग : व्यक्तित्व निर्माण की पहली सीढ़ी

योग को सर्वप्रथम महर्षि पतंजलि ने सूत्र बद्ध किया और जनकल्याण के लिए अष्टांग योग का मार्ग बताया।

अष्टांग योग:
1 यम 2 नियम 3 आसन 4 प्राणायाम 5 प्रत्याहार 6 धारणा 7 ध्यान 8 समाधि ।

यम अर्थात अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह व ब्रह्मचर्य का पालन।

वर्तमान परिपेक्ष में अहिंसा का पालन अति आवश्यक हो गया है। जन्म लेते ही मनुष्य अपनी पहली श्वास के साथ ही समाज से जुड़ जाता है और जब तक संसार में रहता है, तब तक समाज का उस पर स्थाई व अस्थाई प्रभाव पड़ता है।

जन्म से ही कोई भी मनुष्य हिंसा या अहिंसा का पालक नहीं होता। उसके व्यक्तित्व निर्माण में परिवार व समाज की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिशु जिस वातावरण में पलकर बड़ा होता है, आसपास के सभी लोगों का व्यवहार देखकर ही वह सभी कुछ सीखता है। अतः, प्रारंभ से ही बच्चों की नींव मजबूत बनाने के लिए नित्य योग साधना, ईश्वर पूजन, सात्विक भोजन, सकारात्मक आचार विचार एवं सहज व्यवहार जैसे सद्गुणों का पालन, परिवार जैसी महत्वपूर्ण सामाजिक इकाई द्वारा करना अति आवश्यक है।

मूलभूत बात यदि की जाए तो हम निम्न कुछ बिंदुओं पर थोड़ा सा ध्यान देकर छोटे-छोटे प्रयत्न कर अपने परिवार के बच्चों का सुंदर भविष्य व उच्च व्यक्तित्व निर्माण कर सकते हैं-

  • घर में प्रेम पूर्ण वातावरण रखें, याद रख कर क्रोध करने से बचें।
  • ब्रह्म मुहूर्त में उठकर ईश्वर पूजन से दिन की शुभ शुरुआत करें, याद रखें कि रात को देर तक नहीं जागना है।
  • नियमित योगाभ्यास करें।
  • परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे को ज्यादा से ज्यादा समय देने का प्रयास करें, याद रख कर मोबाइल व टीवी पर अपना कीमती समय व्यर्थ ना गवाएं।
  • सही समय पर परिवार के साथ बैठकर सात्विक भोजन करें। याद रख कर टीवी व मोबाइल देखते हुए व पैकेट बंद भोजन ना करें।
  • परिवार में बातचीत व हंसी खुशी का वातावरण बनाएं। विशेषकर बच्चों की जिज्ञासाओं को अवश्य शांत करें। याद रखें बच्चों को समय ना देना उन्हें आप से दूर कर सकता हैं।
  • हर परिस्थिति में सकारात्मक बने रहें। हमारे साथ जुड़कर आज, अभी, इसी वक्त से प्रयास आरंभ करें और हमसे अपने अनुभव जरूर साझा करें।

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